सारे,
घर को नचाने वाली
जिससे पूछे बिना एक पत्ता भी ना हिलता हो
आंगन में
या जिससे दर्पण, समर्पण कर बैठा हो
जब खडी होती है
मॉल्स में
किसी कॉस्मेटिक काऊंटर पर
ठिठकी सी
बेचारी लगती है
सेल्सगर्ल,
अपना काम बडी ही खूबी से
कर रही होती है
एक सपना सजों देने का
उसकी आंखों में
ब्यूटी टिप्स के साथ
फेस मास्क के साथ कंडीशनर /
एंटी रिंकल क्रीम / हेयर कलर्स के नये शेड
वह बस ठगी सी खड़ी होती है
हाथों में थामे
कुछ सुन्दर सी बोतलें / पैकेट्स
उम्र को पीछे छोड़ देने की चाहत में
वह कुछ भी तय नही कर पा रही है
रुके कुछ देर यूँ ही
और बसाये हसीन ख्वाबों को आँखों में /
या अपनी राह देख ले
वह,
कभी तो
जैसे लड़ रही होती है
अपने आप से
क्या छोडे क्या ले अपने साथ
फिर हार कर पूछ ही लेती है
उस बंदे से
चलें, कब से यूँ ही खड़े हो?
और
वह बेचारा चुप रह जाता है
गर्दन हिलाते हुये
कुछ ऐसे कि
जिसका मतलब हाँ या ना दोनों में से
किसी एक में निकाला जा सकता हो अपनी सहुलियत से
अब तक वह,
खुद भी बोर हो चुकी होती है
किसी दूसरे के इशारों पर बहुत देर तक नाचते हुये
अब,
उसे याद आने लगा है घर /
पड़ा हुआ काम /
आज महरी नही आने वाली है /
और,
बाजार में जो भी कुछ है
वह किसी न किसी के पास तो है
कुछ भी नया / एक्सक्लूसिव्ह नही है
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मुकेश कुमार तिवारी
दिनांक : १९-मार्च-२००९ / समय : ११:३५ रात्रि / घर
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22 टिप्पणियाँ
बहुत ही बेहतरीन प्रस्तुति, बधाई ।
29 जुलाई 2009 को 12:46 pm बजेतिवारीजी बहुत सुंदर रचना. बहुत शुभकामनाएं..
29 जुलाई 2009 को 1:45 pm बजेरामराम.
महकते हुए शब्द मन मोहित कर लेते हैं
29 जुलाई 2009 को 1:55 pm बजेदिलचस्प ओर बेहतरीन...खास तौर से आखिरी चंद पंक्तिया ......
29 जुलाई 2009 को 1:56 pm बजेसुन्दर लिखा है तिवारी जी............. घर का मोह........... जो सिर्फ उसी का है........... लाजवाब अभिव्यक्ति है
29 जुलाई 2009 को 2:06 pm बजेzindgee ke ek sach ko behtreen dhang se lkiha apne......
29 जुलाई 2009 को 2:42 pm बजेबहुत खूब ...अब शापिंग माल्स की व्यस्तता को भी आम ज़िंदगी में उतारने लगे हो :)...
29 जुलाई 2009 को 3:25 pm बजेकहीं और मिले ना मिले, यहां पर ए़क्स्ल्यूसिव मिल ही जाता है...
आदर सहित
नवीन
EK SACH YAH KI UMAR KO PICHE CHHODENE KI CHAHAT KOI BURI BAT NAHI HAI ......BAS IRADE NEK HONE CHAHIYE....AAP APANE BHAW KE DWWARA JIN BATO KO BTANE KOSHISH KARI HAI ....BHAW SUNDAR .....RACHANA BEHAD KHUBSOORAT HAI....AABHAR
29 जुलाई 2009 को 3:27 pm बजेOM ARYA
बहुत सुंदर रचना...बहुत बहुत बधाई....
29 जुलाई 2009 को 3:51 pm बजेबहुत सटीक रचना है बडी सुन्दरता से शब्दों को संवारा है बधाई
29 जुलाई 2009 को 4:06 pm बजेइतने सारे उपाय-उपकरण और फिर भी मुठ्ठी की रेत सी सरकती जाती है उम्र।
29 जुलाई 2009 को 4:11 pm बजेसम्मान्य बन्धु ,
29 जुलाई 2009 को 5:09 pm बजेएक और बेहतरीन रचना, सुंदर अभिव्यक्ति, सार्थक शब्द-संयोजन ! मन प्रसन्न हुआ, आनंदवर्धन को आनंद हुआ ! बधाई !!
बहुत खूब ....सब से अलग पाने की चाहत और उसकी कशमकश को बखूबी उकेरा है आपने ..यह पंक्तियाँ स्त्री स्वभाव को सही तरीके से व्यक्त करती है
29 जुलाई 2009 को 5:52 pm बजेअब,
उसे याद आने लगा है घर /
पड़ा हुआ काम /
आज महरी नही आने वाली है /
kyunki wo bhi isi duniya ka hissa hai to waqt kab kisi ke liye ruka hai jo uske liye ruk jaye aur uske sath uski soch .
29 जुलाई 2009 को 6:27 pm बजेchahtein na jane kitni hoti hain par poori kaise hongi ya nhi kah nhi sakte magar phir bhi sapne dekhte hi hain.........nari sulabh bhavnaon ko khoobsoorti se ukera hai.
badhiye rachna/
29 जुलाई 2009 को 6:49 pm बजेबाजार में जो भी कुछ है
वह किसी न किसी के पास तो है
कुछ भी नया / एक्सक्लूसिव्ह नही है
wah, antim is line ki baat hi kya../
badhiye rachna/
29 जुलाई 2009 को 6:49 pm बजेबाजार में जो भी कुछ है
वह किसी न किसी के पास तो है
कुछ भी नया / एक्सक्लूसिव्ह नही है
wah, antim is line ki baat hi kya../
Sundar...par iska ek doosara chitr badee qareeb se dekha hai...kabhi likhungi us ke baremebhee...!
30 जुलाई 2009 को 12:11 am बजेभाई,
30 जुलाई 2009 को 3:53 pm बजेमॉल्स में क्या यही कुछ देख रहे हो?
होने वाली गतिविधियों का व्यापक कव्हरेज़,पैना दृष्टीकोण।
पत्रिका-गुंजन
बहुत ख़ूबसूरत, शानदार और उम्दा रचना लिखा है आपने! इस बेहतरीन प्रस्तुति के लिए ढेर सारी बधाइयाँ!
31 जुलाई 2009 को 3:22 pm बजेआज मुझे आप का ब्लॉग देखने का सुअवसर मिला।
31 जुलाई 2009 को 4:43 pm बजेसचमुच में बहुत ही प्रभावशाली लेखन है... वाह…!!! वाकई आपने बहुत अच्छा लिखा है। बहुत सुन्दरता पूर्ण ढंग से भावनाओं का सजीव चित्रण... आशा है आपकी कलम इसी तरह चलती रहेगी और हमें अच्छी -अच्छी रचनाएं पढ़ने को मिलेंगे, बधाई स्वीकारें।
आप के द्वारा दी गई प्रतिक्रियाएं मेरा मार्गदर्शन एवं प्रोत्साहन करती हैं। आप मेरे ब्लॉग पर आये और एक उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया दिया…. शुक्रिया.
आशा है आप इसी तरह सदैव स्नेह बनाएं रखेगें….
आप के अमूल्य सुझावों का 'मेरी पत्रिका' में स्वागत है...
Link : www.meripatrika.co.cc
…Ravi Srivastava
Dil se nikli baaten seedhe dil ko chhu liti hain.
31 जुलाई 2009 को 5:42 pm बजे-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
गहरे अर्थपूर्ण भाव लिये --
1 अगस्त 2009 को 4:55 am बजेत्रासदी की भंगिमायुक्त --
किस्तो मे अस्तित्व को बांट कर शायद --
या फिर नियति के चक्र्व्यूह मे --
बहुत खूबसूरत रचना
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