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घर

मंगलवार, 14 जुलाई 2009

घर,
जिसकी दीवारों से सीलता हो
बुजर्गों का आशीर्वाद
उखड़ते प्लास्तर से झांकती हो
दुआयें
छतों से टपकता हो
अपनापन
या दहलीज लांघकर आ जाती हो
बरकत,
बारिश के पानी के साथ


घर,
जिसे नया बनाने के लिये
माँ ने पापा से कितनी ही लड़ाईयाँ लड़ी हो
कभी-कभी आँसू भी बहाये हों
बच्चों ने सिखायी हो
अपने बाप को प्लानिंग
या कभी दिखायी हों नाराजगियाँ

अंततः,
एक अदद किराये के मकान के साथ
जिसे घर में बदला जा सकता है
वही घर,
एक एककर जब खाली होता है तो
लिपटता चला जाता है बदन से
और चल पड़ता है
हमारे साथ
-----------------------
मुकेश कुमार तिवारी
दिनांक : ०४-जुलाई-२००९ / समय : दोपहर ०४:०० / नये घर में

22 टिप्पणियाँ

M VERMA ने कहा…

घर की अद्भुत त्रसदी का बयान अद्भुत तरीके से
कुल मिलाकर अद्भुत रचना

14 जुलाई 2009 को 6:22 pm बजे
ओम आर्य ने कहा…

bahut hi sundar rachana isliye ki yah bilkul yatharth hai ..par dekhana ka najariya hi to makan ko ghar bana deta hai ........bahut hi sundar dil ke karib lagi .......

14 जुलाई 2009 को 6:41 pm बजे

जीवन के यथार्थ को उजागर करती हुई रचना. बहुत शुभकामनाएं.

रामराम.

14 जुलाई 2009 को 6:43 pm बजे
Udan Tashtari ने कहा…

वही घर,
एक एककर जब खाली होता है तो
लिपटता चला जाता है बदन से
और चल पड़ता है
हमारे साथ

--यही सत्य है...

14 जुलाई 2009 को 6:44 pm बजे
रंजू भाटिया ने कहा…

दीवारे घर की कुछ कहती है यह अक्सर महसूस किया है ..आपने उसी सच को सुन्दर लफ्जों में ढाल दिया है मुकेश जी .

14 जुलाई 2009 को 6:48 pm बजे

sahi baat hai...int pathero se ghar nahi banta...ghar logo se banta hai...lekin unhi pather ki diwaro se bhi pyaar ho jata hai....pather me bhi juba hoti hai,dil hote hai.apne ghar ki daro diwar saza kar dekho...

14 जुलाई 2009 को 7:19 pm बजे
Vinay ने कहा…
mehek ने कहा…

sunder rachana,gharke sahi mayane bayan karti huyi.

15 जुलाई 2009 को 2:07 am बजे
गुंजन ने कहा…

भाई,

सच लिखा है।

मकान सपनों को हकीकत में बदलकर ना जाने कब घर में बदल जाता है, और जिन्दगी से जुड़ा रह जाता है।

जीतेन्द्र चौहान

15 जुलाई 2009 को 9:51 am बजे

Ghar banne aur ghar se bichudne ke gam ko bahoot hi bhaavok tarike se utaara hai aapner is rchna mein........jevan ka saty hai paana aur khona.... GHAR bhi unme se ek hai

15 जुलाई 2009 को 4:51 pm बजे
BrijmohanShrivastava ने कहा…

पहला पद - वास्तव में वही घर है वाकी तो मकान हैं |बच्चों ने सिखाई हो बाप को प्लानिंग विल्कुल सही है क्योंकि आज की आवश्यकता और फैशन को बच्चे ज्यादा समझते हैं अंतिम पद की पीडा जिसने भोगी है उसने रचना पढ़ कर ठंडी सांसें जरूर भरी होंगी

15 जुलाई 2009 को 6:02 pm बजे
श्यामल सुमन ने कहा…

अच्छी प्रस्तुति मुकेश भाई। सचमुच घर तो अपने आप में बिशेष अर्थ रखता है। बधाई।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com

15 जुलाई 2009 को 6:32 pm बजे
शोभना चौरे ने कहा…

mkan ko ghar bna diya apke in bhavo ne . .sudar rchna

16 जुलाई 2009 को 3:35 pm बजे

घर,
जिसकी दीवारों से सीलता हो
बुजर्गों का आशीर्वाद
...
mujhe aapki yah rachnaa sabse jyada pasand aai/

ek ghar se aatmiyataa ki sachchai usase hi poochhi jaa sakti he jisane 'ghar' ki tarah apna jivan bhi bitayaa ho/
sundar rachna ke liye badhaai

16 जुलाई 2009 को 7:00 pm बजे
anil ने कहा…

जीवन के यथार्थ को उजागर करती हुई सुन्दर रचना .

17 जुलाई 2009 को 1:19 am बजे
Saagar ने कहा…

सत्य वचन बंधु... सत्य वचन

20 जुलाई 2009 को 3:56 pm बजे
sandhyagupta ने कहा…

Gehrai tak asar choda aapki is rachna ne.

20 जुलाई 2009 को 7:43 pm बजे

Yr poem really touched my heart,very true when mother makes ahot debate with father to modify or up grade some thing in newly constructed house.
Your approach is realistic and words are impressive.
My regards
Dr.Bhoopendra

21 जुलाई 2009 को 12:27 am बजे

Yr poem really touched my heart,very true when mother makes ahot debate with father to modify or up grade some thing in newly constructed house.
Your approach is realistic and words are impressive.
My regards
Dr.Bhoopendra

21 जुलाई 2009 को 12:27 am बजे
शोभना चौरे ने कहा…

bahut sundar abhivykti
phle chata bhi sanjhe chulhe ki tarh sanjha hota tha .ak add chata pure ghar ko barish se bcha le jata tha .
aur s alo tak sath nibhata tha prijan ki tarh.
abhar

28 जुलाई 2009 को 11:39 am बजे
शोभना चौरे ने कहा…

bahut sundar abhivykti
phle chata bhi sanjhe chulhe ki tarh sanjha hota tha .ak add chata pure ghar ko barish se bcha le jata tha .
aur s alo tak sath nibhata tha prijan ki tarh.
abhar

28 जुलाई 2009 को 11:39 am बजे
शोभना चौरे ने कहा…

bahut sundar abhivykti
phle chata bhi sanjhe chulhe ki tarh sanjha hota tha .ak add chata pure ghar ko barish se bcha le jata tha .
aur s alo tak sath nibhata tha prijan ki tarh.
abhar

28 जुलाई 2009 को 11:39 am बजे