तुम,
जब मुस्कुराती हो
और मेरे कंधे पर सिर टिकाते हुये
बात करती हो
कुछ शिकायत भी
अच्छी लगती हो
तुम,
जब शाम से ही
मेरा इंतजार करती हो
और मेरे आते ही
समा जाती हो
मेरी बांहो में
अच्छी लगती हो
तुम,
जब बिलखने लगती हो
नाराज किसी बात पर
और मेरी किसी भी बात को
नही सुनती हो
बच्ची लगती हो
तुम,
जब उदास होती हो तो
पैर पटकते हुये
घूमती हो आँगन में
या सिर पर पट्टी बांधे
सिमटी होती हो बिस्तर पर
क्या कहूँ .............?
कैसी लगती हो ?
-----------------------------------
मुकेश कुमार तिवारी
दिनांक : २८-मई-२००९ / समय : १०:०५ रात्रि / घर
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25 टिप्पणियाँ
अंतिम पंक्तियाँ तो गज़ब है ..........बहुत बहुत खुब्सूरत एहसास .........प्यार पर प्यार आना तो एक रुहानी सुख है.
21 जुलाई 2009 को 12:13 pm बजेसचमुच में बहुत ही प्रभावशाली लेखन है... वाह…!!! वाकई आपने बहुत अच्छा लिखा है। आशा है आपकी कलम इसी तरह चलती रहेगी और हमें अच्छी -अच्छी रचनाएं पढ़ने को मिलेंगे, बधाई स्वीकारें।
21 जुलाई 2009 को 12:58 pm बजेआप के द्वारा दी गई प्रतिक्रियाएं मेरा मार्गदर्शन एवं प्रोत्साहन करती हैं।
आप के अमूल्य सुझावों का 'मेरी पत्रिका' में स्वागत है...
Link : www.meripatrika.co.cc
…Ravi Srivastava
बहुत ही बेहतरीन प्रस्तुति ।
21 जुलाई 2009 को 1:02 pm बजेप्यार की इससे खूबसूरत अभिव्यक्ति और क्या हो सकती है.......
21 जुलाई 2009 को 1:35 pm बजेअति मोहक अंदाज,निश्छल प्यार
प्यार का हर रंग अनूठा है और आपने वही समेट लिया है इस रचना में मुकेश जी .बहुत रूमानी सुन्दर अभिव्यक्ति
21 जुलाई 2009 को 1:42 pm बजेबहुत ही बेहतरीन अभिव्यक्ति. शुभकामनाएं.
21 जुलाई 2009 को 2:37 pm बजेरामराम.
प्यार तो एक इह्सास है और आपने बहुत ही खूबसूरती से जिया है उस एहसास को.......... प्यार के un पलों को........लाजवाब
21 जुलाई 2009 को 2:52 pm बजेबहुत सुन्दर अभिव्यक्ति है प्यार के इन्द्रधनुश की आभार्
21 जुलाई 2009 को 2:52 pm बजेवाह...विवाहित जीवन के प्रेम भरे भावों की सुन्दरतम प्रस्तुति....कमोबेश ये हर जगह होता है....
21 जुलाई 2009 को 3:46 pm बजेaapki ye kavita sajeev or sunder ban padhi hai......boht hi sunder...
21 जुलाई 2009 को 6:44 pm बजेअति सुन्दर
21 जुलाई 2009 को 6:52 pm बजेदिल छू लेने वाली रचना
21 जुलाई 2009 को 8:52 pm बजे---
· ब्रह्माण्ड के प्रचीनतम् सुपरनोवा की खोज
· ॐ (ब्रह्मनाद) का महत्व
मुकेश भाई - खूबसूरत भाव-प्रस्तुति।
22 जुलाई 2009 को 6:23 am बजेइस रचना में मुख्यपात्र के अलग अलग हैं रूप।
कवि सहजता से लिखा कहीं छाँव और धूप।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
हम तो इसे रूमानी अंदाज कहेंगे
22 जुलाई 2009 को 11:40 am बजेओह, मुझे तो अपनी पत्नी दुनियां की सबसे सशक्त और सबसे कोमल महिला लगती है!
22 जुलाई 2009 को 12:56 pm बजेभाई,
22 जुलाई 2009 को 1:26 pm बजेक्या बात है?
अपने हाल सी लगती है
जिन्दगी बेहाल सी लगती है
अगर वो रूठ जायें तो
रोटी भी मुहाल लगती है
क्यों ठीक है ना ?
जीतेन्द्र चौहान
तिवारीजी,
22 जुलाई 2009 को 2:08 pm बजेआपकी टिपण्णी के लिए आभारी हूँ. आपके प्रोफाइल पर इंट्रो पढ़कर आनंदित हुआ--'जहाँ जरूरतें जेब से बड़ी और और समझदारी उम्र से बड़ी होती है'... सच मानिये, हम-आप समानधर्मा हैं ! समधर्मियों में मित्रता हो जाये तो क्या बुरा है ? है न ??
'kaise lagti ho...' kavita antaraatma ko chhooti hai. badhai !
रोचक लगी कविता.
22 जुलाई 2009 को 3:18 pm बजे====================
डॉ.चन्द्रकुमार जैन
सुन्दर,
22 जुलाई 2009 को 7:46 pm बजेअंतःकरण की आवाज को गलत तो नहीं ही कहा जा सकता.
सच्ची स्वीकारोक्ति का स्वागत है...........
अहा क्या अंदाज़ है सर?
22 जुलाई 2009 को 8:59 pm बजेwah ji, bahut khoob, roohanee andaaz bhi bhayaa.
22 जुलाई 2009 को 9:24 pm बजेआज मुक्ताकाश से होते हुए आपके ब्लौग पर आई. अफ़सोस हुआ कि अभी तक अछूती कैसे रह गई आपके ब्लौग से? सुन्दर रचनायें. बधाई.
22 जुलाई 2009 को 10:26 pm बजेख़ूबसूरत एहसास और दिल को छू लेने वाली इस बेहतरीन रचना के लिए बधाई!
23 जुलाई 2009 को 6:32 am बजेप्रिय तिवारी जी | कैसी लगती हो ,जैसा मैंने सोचा सचमुच वैसी लगती हो |भैया हमारा तो नजरिया ही अलग रहता है | कुछ शब्दों का हेर फेर कर दिया जाये तो छोटी सी प्यारी सी बेटी पर भी यह कविता लागू हो सकती है
23 जुलाई 2009 को 9:38 pm बजेबेहद ,सरल और दिलकी सियाही से लिखी रचना ...!
25 जुलाई 2009 को 3:40 pm बजेमुकेशजी , बोनसाई मेरेही बने हुए हैं .. बागवानी का अलग ब्लॉग है ..वहाँ पे बागवानी की मालूमात के अलावा , बागवानी से जुडी यादें मोजूद हैं.." बागवानी की एक शाम ", बागवानी की एक दोपहर," "आओ ना बरखा रानी," "आ गयी बरखा रानी", "चंद रचनात्क्मक यादें"...आदि,अदि...मै बोनसाई बनने, (matlab banaane'....bada ajeeb-saa arth nikal raha tha,isliye, dobara likha...!) के तरीकों पे एक छोटी विडियो फ़िल्म पोस्ट करना चाह रही हूँ...
http://shama-baagwaanee.blogspot.com
तथा, कला के चंद और नमूने, जो भारत में अछूते हैं, उनपे भी छोटी,छोटी विडियो फिल्म्स पोस्ट करना चाहती हूँ॥
"लिज्ज़त" ब्लॉग पे, पाक कलाके भी व्यंजन शूट कर,( विडियो के ज़रिये)पोस्ट करनेका इरादा है.. ये सब कब होगा,ये तो नही पता॥!
एक camera person की ज़रूरत है...बात तो यहाँ आके अटकी हुई है..!
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तहे दिलसे शुक्रिया...!
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