मैं,
जिन्दगी भर
यह मानता रहा कि
लोग सच बोलते हैं
हालांकि उम्र के
हर पड़ाव पर
सच के मायने बदले गये
मेरा,
सारा बचपन
इसी भ्रम में बीत गया कि
मुझे किसी कचरा-पेटी से लाया गया है
किसी जच्चाखाने से नही
फिर धीरे-धीरे यह समझ आ गई कि
मैं अपनी माँ का ही बेटा हूँ
वो तो किया गया मजाक था
मेरी,
जवानी में
मेरे बचपन की कोई तस्वीर
जिसमें मैं,
मासूम, भोला, सुन्दर दिखता हूँ
(वैसे सभी बच्चे मासूम/भोले/सुन्दर होते हैं)
छाई रही मेरी आँखों में
फिर मन में अपनी छाप छोड़
सच में बदल गई
मैं बड़ा होता रहा इसी सच के साथ
उम्र,
के इस पड़ाव पर
जब आईना दिखाता है
सच
मुझसे सहन नही होता
मेरे मन पर छाई
अपनी वही तस्वीर नकार देती है
आईने का सच
और, मैं यह मानने लगता हूँ कि
लोग सच नही बोलते है
यहाँ तक की आईना भी
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मुकेश कुमार तिवारी
दिनांक : २९-मार्च-२००९ / समय : ०४:१५ दोपहर / घर
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2 टिप्पणियाँ
bahut hi achcha
31 मार्च 2009 को 8:35 pm बजेलोग सच नही बोलते है
3 अप्रैल 2009 को 7:13 pm बजेयहाँ तक की आईना भी
बहुत बढ़िया ....
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