रात,
भर के जश्न के बाद
सुबह कॉलोनी की सड़कें भरी हैं
बिखरी हुई पेपर प्लेट्स /
खुले हुये कॉर्क /
कुछ खाली बोतलें /
पटाखों के खाली कव्हर्स से
हवा में तैर रहे हैं
रात लिये गये संकल्प
दिन,
चढ आया है
नये वर्ष का सूरज आसमान में
लिख रहा है नयी इबारत
लोग,
अभी भी रजाईयों में दुबके हैं
गर्म सपनों के साथ
सभी ने अपने दिन ढकेल रक्खे हैं
जेब के पीछे या गर्दन के नीचे
यह,
सुबह कोई नई सुबह नही है
कुछ भी नया नही है
आज भी भूख जाग आयी है सुबह से ही
जैसे उसे कोई फर्क नही पडा़ हो
नये साल की सुबह हो या कोई और
आज,
फिर छोड़ना है बिस्तर /
वही झोला टाँग लेना है /
बस बीनते हुये कचरा दिन मुकम्मल करना है
शुक्र इतना है कि
कल रात नये साल का जश्न था
गलियाँ आबाद है कचरे से
कल सुबह अगर, मैं
देर से उठूं तो चल सकता है
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मुकेश कुमार तिवारी
दिनांक : ३१-दिसम्बर-२००८ / समय : १०:५५ रात्रि / घर
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1 comment
very nice observation sir
1 जनवरी 2009 को 10:39 am बजेनव वर्ष २००९ आपको मंगलमय हो
आपका साहित्य सृजन खूब पल्लिवित हो
प्रदीप मानोरिया
09425132060
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