शायद,
अब बकरियाँ सीख लें
अपने दाँतों को पैना करना
और काट लें सड़कों पे भागते आदमी को
शायद,
अब मुर्गें भी सीख लें
अपने पंजों में जान डालना
और पकड़ बनाना मजबूत नाखूनों के सहारे
कुछ ऐसी की
नोंच सके आदमी का चेहरा
जंगल,
तो पहले भी महफूज नही था बिल्कुल
शायद इसिलिये ही
इन्होंने पसंद किया होगा
किसी खूंटे से बंधना /
तलाश लेना अपने लिये दड़बा कोई
लेकिन,
यह पालतू अब ड़रने लगे हैं
घरों में जंगली होते आदमी से
आखिर जान तो सभी को प्यारी होती है
फिर,
वो चाहे कोई चौपाया ले या दोपाया
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मुकेश कुमार तिवारी
दिनाँक : १०-जून-२०१० / समय : ०३:०० दोपहर
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11 टिप्पणियाँ
well said
14 जून 2010 को 4:28 pm बजेक्या पैनी बात की है
14 जून 2010 को 4:54 pm बजेbadi gehri baat kahi...
14 जून 2010 को 5:38 pm बजेबहुत खूब मुकेश तिवारी साहेब दिल खुश केर दिया. यकीन जानिए जंगले इस दोपाये की दुनिया से ज्यादा महफूज़ है. जान्वेर सिर्फ भूक लगने पे काटता है इस दोपाये का कोई भारिसा नहीं कब कहां काट ले.
14 जून 2010 को 6:17 pm बजेसच कह रहे हैं आप...
14 जून 2010 को 6:29 pm बजेDuniya ki sab se darawni cheez adami hee to hai!
14 जून 2010 को 6:34 pm बजेसही कहा आपने -- घरों में जंगली होत जा रहा है आदमी।
14 जून 2010 को 9:33 pm बजेयह पालतू अब ड़रने लगे हैं
14 जून 2010 को 10:00 pm बजेघरों में जंगली होते आदमी से
दोपाये के दंश को सहकर चौपाये जब अपने तंज को और पैना करना चाहते है तो आखिर ताज्जुब किस बात का.
बहुत सुन्दर रचना
प्रणाम
बहुत सही बात कही आपने....
14 जून 2010 को 10:28 pm बजेsahi kaha apne bhaisahab..
14 जून 2010 को 10:35 pm बजेबेहतरीन………लाजवाब्……………शानदार्।
15 जून 2010 को 12:54 pm बजेएक टिप्पणी भेजें