तुम्हें,
शायद मेरी बातों पर
यकीन नही हुआ होगा
तुम,
हमेशा कि तरह ही
सोच रही होओगी कि
मुझे इस बात से कोई
फर्क नही पड़ेगा
जब कोई तुम्हें कुछ कहता होगा
फिर, कुछ देर बाद
मैं खुद को उलझा लूंगा
कभी ना खत्म होने वाली
उलझनों में
और, तुमसे उम्मीद भी रखूंगा कि
भूल जाओ, जो भी हुआ है
केवल,
तुम अकेली ही लड़ती रहोगी
अपने-आप से
तुम्हें,
यह भी लगता होगा कि
ज़हर केवल तुम्हें पीना है
और जैसे बाकी सब
या तो तमाशाई हैं
या हँस रहे होंगे तुम पर
यहाँ तक की
मैं भी शायद
तुम्हारे दर्द को महसूस नही कर पाऊंगा
या कुछ हद तक
मेरा दिलासा तुम्हें
फिर खींच लायेगा मेरे बिस्तर पर
और बर्फ पिघल जायेगी
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मुकेश कुमार तिवारी
दिनांक : २६-मार्च-२००९ / समय : ११:१० रात्रि / घर
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10 टिप्पणियाँ
Mere blogpe tippneeke liye bohot shukrguzar hun..
22 मई 2009 को 9:31 pm बजेAapkee rachnaa, sheershak sehee lubha letee hai...aur padhtehee rehneka man karta hai..
Shayad, harek rachna ikhtiyaar rakhtee hai, use alagse padhe janega, aur tippaneeka..
Jaiseki,"soyee sbah, jaagee raat"..
Tannum ke bareme to nahee jaanti, lekin,apne apme ek lay hai, jise darkinar nahee kiya ja sakta..
Sabhi rachnayen,padhna chahungi, fursatse...Aatee rahungi..
snehadar sahit
Shama
क्या खूब लिखा है मुकेश जी, बधाई . फर्क सिर्फ इतना है की आपने अपने दिल की बात को शब्दों में पिरो कर कविता लिख दी और में इन्ही शब्दों से गुफ्तगू करता हूँ. आपका भी मेरे ब्लॉग पर स्वागत है . www.gooftgu.blogspot.com
23 मई 2009 को 2:04 pm बजेBahut khoobsoorat rachana. Aakhri do panktiyaan kavita ki jaan hai.
24 मई 2009 को 12:06 am बजेGod bless
RC
wah, bahut achhi rachna he/ abhvyakti me yatharth he/ man ki uhaapoh he/ aur jo hota he, hota aaya he, sabkuchh he/
24 मई 2009 को 10:59 pm बजेaapki rachnao me mene vyktivachk pryog paya he/ jivan ka dharataliya satya/
mukeshji,
aapka phon kyo nahi lagta??
pichhle 3-4 dino se me koshish kar rahaa hu/
बेहद मासूम अभिव्यक्तियाँ. ....शुभकामनायें !!
25 मई 2009 को 11:03 pm बजेबेहद रोचक और सुन्दर ब्लॉग
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एक गाँव के लोगों ने दहेज़ न लेने-देने का उठाया संकल्प....आप भी पढिये "शब्द-शिखर" पर.
सुन्दर और सत्य अभिव्यक्ति. लाजवाब् आभार्
26 मई 2009 को 3:00 pm बजेबड़ी करीब सी लगी आपकी रचना, बहुत उम्दा ख्याल!!
26 मई 2009 को 9:17 pm बजेदेर से आने के लिए मुआफ़ी चाहूँगा, किन्तु रचना का रस समन्दर की तह तक ले जाता है
28 मई 2009 को 12:21 am बजेदेर से पढ़ी आपकी यह रचना .कई बार बर्फ और सर्द हो कर जम जाती है ..और पीडा उसके अन्दर चुपचाप बहती है ..
29 मई 2009 को 10:56 am बजेएक बहुत ही सुंदर कविता...
8 जून 2009 को 9:59 pm बजेदुष्यंत कुमार की याद दिला गयी। उनकी "अपनी प्रेमिका से.." की याद!
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