आकाश ,
तुम एक चुनौती ही रहे मेरे लिये
मैनें अपनी ऊँचाईयों को पहचाना
तुम्हारे होने से
और
हमारे फासले के बीच
क्षितिज से लगाकर व्योम तक
मैनें अपनी साँसे भर दी
और गौण हो गया
तुम्हारे साये में
मैनें लिक्खी थी जो कहानियाँ
वो किसी उपन्यास में बदलने के पहले ही
खत्म हो गयी
चौराहों पर कानाफूसी में
और
तुम अजेय बने रहे
तुम,
अपना सूनापन
मेरी साँसों में भर
खुद हँस लेते हो
मेरी नाकामियों पर
और
मुझे तलाशना होता है
अपने वुजूद को
धरती के इस छोर से उस छोर तक
फिर तुम्हारे विस्तार में
जहाँ शुभ्र चटक रंग वालों बादलों के बाद
कोई जगह नही बचती
मेरे लिये
आकाश,
तुम कभी मुझे लगे
कि जैसे किसीने
मेरे सिर पर खींच दी हो
सीमारेखा
या बाँध ली हो
मेरी ऊँचाईयों को
और हमारे बीच ठूंस दिया हो
जिम्मेदारियों को लानतों में बदलकर
और तुम मोहरा भर बने रहे
इस साजिश में
मेरे खिलाफ़
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मुकेश कुमार तिवारी
दिनाँक : 30-ऑक्टोबर-2010 / समय : 01:00 रात्रि / सी.एच.एल.-अपोलो हास्पिटल, इन्दौर
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13 टिप्पणियाँ
बहुत गहन रचना!
5 नवंबर 2010 को 2:26 am बजेसुख औ’ समृद्धि आपके अंगना झिलमिलाएँ,
दीपक अमन के चारों दिशाओं में जगमगाएँ
खुशियाँ आपके द्वार पर आकर खुशी मनाएँ..
दीपावली पर्व की आपको ढेरों मंगलकामनाएँ!
-समीर लाल 'समीर'
आकाश की विशालता जब मन में परिलक्षित होने लगती है, मन अजेय हो जाता है।
5 नवंबर 2010 को 11:58 am बजेबेहद गहन प्रस्तुति।
5 नवंबर 2010 को 1:10 pm बजेदीप पर्व की हार्दिक शुभकामनायें।
सुंदर और गहन रचना।
5 नवंबर 2010 को 3:08 pm बजेचिरागों से चिरागों में रोशनी भर दो,
हरेक के जीवन में हंसी-ख़ुशी भर दो।
अबके दीवाली पर हो रौशन जहां सारा
प्रेम-सद्भाव से सबकी ज़िन्दगी भर दो॥
दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई!
सादर,
मनोज कुमार
आप को सपरिवार दीपावली मंगलमय एवं शुभ हो!
5 नवंबर 2010 को 4:18 pm बजेमैं आपके -शारीरिक स्वास्थ्य तथा खुशहाली की कामना करता हूँ
too good! bahut bahut khoob! Poori kavita bahut sundar ...
10 नवंबर 2010 को 1:31 pm बजेऔर तुम मोहरा भर बने रहे
12 नवंबर 2010 को 5:12 am बजेइस साजिश में
मेरे खिलाफ़
यकीनन आकाश तो मोहरा भर है. ऊँचाईयों और दायरों का निर्धारण तो कोई और ही कर रहा है आकाश के कन्धे पर बन्दूक रखकर.
सुन्दर .. गहन रचना
अच्छी कविता है मुकेश जी ।
17 नवंबर 2010 को 12:22 am बजेविशाल फलक पर रची कविता बहुत सुंदर है बधाई
28 नवंबर 2010 को 9:05 pm बजेआप सभी का धन्यवाद,
2 दिसंबर 2010 को 5:55 pm बजेआपकी टिप्पणियों ने सदा ही अच्छा(मेरा यह आशय नही है कि मैं अच्छा लिखता हूँ, हरबार पहले से सुधरने की प्रक्रिया से गुजरना) लिखने को प्रेरित किया है।
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
आदरणीय मुकेश तिवारी जी
11 दिसंबर 2010 को 11:12 am बजेनमस्कार !
...........बेहद गहन प्रस्तुति।
बहुत पसन्द आया
हमें भी पढवाने के लिये हार्दिक धन्यवाद
बहुत देर से पहुँच पाया ..........माफी चाहता हूँ..
और
24 दिसंबर 2010 को 12:49 pm बजेमुझे तलाशना होता है
अपने वुजूद को
धरती के इस छोर से उस छोर तक
फिर तुम्हारे विस्तार में
जहाँ शुभ्र चटक रंग वालों बादलों के बाद
कोई जगह नही बचती
मेरे लिये
बहुत कुछ पढने को मिला आज तो आपके लिखे में मुकेश जी ..बेहतरीन .बेहद अपनी लगी यह पंक्तियाँ
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