tag:blogger.com,1999:blog-8473626538363608449.post8205959007670385065..comments2023-07-31T13:57:43.732+05:30Comments on कवितायन: खुली हवा में साँसमुकेश कुमार तिवारीhttp://www.blogger.com/profile/04868053728201470542noreply@blogger.comBlogger3125tag:blogger.com,1999:blog-8473626538363608449.post-11557835368972560512009-01-07T18:42:00.000+05:302009-01-07T18:42:00.000+05:30मुकेश जी... बहुत खूबी से जीवन के एकांत का चित्रण क...मुकेश जी... बहुत खूबी से जीवन के एकांत का चित्रण किया है, शब्दों की माला को एक तेज धार बना कर फिर वापिस अपने ऊपर ही वार करना, वो भी इतनी महारत से कि खुद्कुशी का इल्जाम भी ना लगे और अपने अंदर की भड़ास को ब्लाग पर भी उडेल दिया जाये... कमाल की लेखनी है.. <BR/><BR/>आपने इससे पहले आदमी के बंटने को भी बखूबी दर्शाया... यकीनन हम कभी इन्सान तो बन ही नहीं पाते... बस एक दूसरे के प्रतिनिधी ही बन के रह जाते हैं और वैसे ही चले जाते हैं...<BR/><BR/>आदर सहितAnonymoushttps://www.blogger.com/profile/06655940685462818211noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8473626538363608449.post-26691312155364552592009-01-07T18:33:00.000+05:302009-01-07T18:33:00.000+05:30सुंदर रचना है. मुझे अन्तिम छंद सबसे प्रभावी लगा, ब...सुंदर रचना है. मुझे अन्तिम छंद सबसे प्रभावी लगा, बधाई!Smart Indianhttps://www.blogger.com/profile/11400222466406727149noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8473626538363608449.post-69665334513199137112009-01-07T16:59:00.000+05:302009-01-07T16:59:00.000+05:30बहुत खूब.अच्छी रचना के लिए धन्यवाद.बहुत खूब.<BR/><BR/>अच्छी रचना के लिए धन्यवाद<BR/>.द्विजेन्द्र ‘द्विज’https://www.blogger.com/profile/16379129109381376790noreply@blogger.com