tag:blogger.com,1999:blog-8473626538363608449.post6025147571969726865..comments2023-07-31T13:57:43.732+05:30Comments on कवितायन: पानी में बदली हुई आग!मुकेश कुमार तिवारीhttp://www.blogger.com/profile/04868053728201470542noreply@blogger.comBlogger6125tag:blogger.com,1999:blog-8473626538363608449.post-89153310019960768382009-03-27T00:22:00.000+05:302009-03-27T00:22:00.000+05:30दिनेश राय जी, हरकीरत जी, रंजू जी सहित प्रायः सभी ...दिनेश राय जी, हरकीरत जी, रंजू जी सहित प्रायः सभी के गंभीर चिंतन जागरूकता एवं पहल की ओर इशारा है.<BR/>- विजयविजय तिवारी " किसलय "https://www.blogger.com/profile/14892334297524350346noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8473626538363608449.post-55497089255189106282009-03-19T17:50:00.000+05:302009-03-19T17:50:00.000+05:30सिर्फ दो शब्द " बहुत सुंदर"....कहाँ तो आप एक अलग ह...सिर्फ दो शब्द " बहुत सुंदर"....<BR/><BR/>कहाँ तो आप एक अलग ही ढंग से श्रृगार रस का दर्शन करा रहे है है......<BR/><BR/>सुर दूसरी ही तरफ,अपने मधुर वाक्यों से नारी के एक रूप का गुणगान कर रहे है .....बहुत अच्छेPuneethttps://www.blogger.com/profile/16033070878507734895noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8473626538363608449.post-10554737050554159752009-03-16T19:32:00.000+05:302009-03-16T19:32:00.000+05:30एक औरत दिल को इतने अच्छे से समझना और फिर उस पीडा ...एक औरत दिल को इतने अच्छे से समझना और फिर उस पीडा को इतने सुन्दर लफ्जों में ढाल देना बहुत दिल को भाया कई बार यह आंसू यह दर्द अपनी बात कहने का और भी जरिए तलाश करता है ...पर आंसू तो यूँ अपनी बात कह ही जाते हैं ..सुन्दर अभिव्यक्तिरंजू भाटियाhttps://www.blogger.com/profile/07700299203001955054noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8473626538363608449.post-34665475893222321882009-03-16T15:04:00.000+05:302009-03-16T15:04:00.000+05:30bahut bahut badhai aapko..bahut sunder rachna likh...bahut bahut badhai aapko..bahut sunder rachna likhi hai aapneDr. Tripat Mehtahttps://www.blogger.com/profile/06972787985997523606noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8473626538363608449.post-342099555001372182009-03-15T13:52:00.000+05:302009-03-15T13:52:00.000+05:30प्रिय तिवारी जी /विगत २० दिन बहुत उलझन और परेशानी ...प्रिय तिवारी जी /विगत २० दिन बहुत उलझन और परेशानी में बीते /आपने जो कविता में भावः व्यक्त किये हैउसमें एक महिला की परेशानी ,विवशता ,सहनशीलता ,गंभीरता सबका समुच्चय है ,जैसे एक एक कली चुन कर किसी ने माला गूँथ दी हो /ये तो नहीं कह सकता कि आपकी अभी तक की रचनाओं में यह सर्वश्रेष्ठ रचना है क्यों क्योंकि आपके सभी रचनाये श्रेष्ठ है /ऐसी गंभीर रचना के लिए हार्दिक वधाईBrijmohanShrivastavahttps://www.blogger.com/profile/04869873931974295648noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8473626538363608449.post-42381953327052043562009-03-14T13:43:00.000+05:302009-03-14T13:43:00.000+05:30कि,जो भी कचोटता हैतुम्हेंबस,छलकने लगता हैआँखों सेऔ...कि,<BR/>जो भी कचोटता है<BR/>तुम्हें<BR/>बस,<BR/>छलकने लगता है<BR/>आँखों से<BR/>और ढलकने लगती है<BR/>पानी में बदली हुई आग<BR/>गालों पर<BR/><BR/>वैसे आग को पानी मे बदल कर आँखों के रास्ते बहा देने वाला स्त्री का यह चरित्र अब बहुत कुछ बदलता जा रहा है. किन्तु स्त्री के उस चरित्र को समर्पित इन पँकित्यों को पढ़वाने के लिये आपको धन्यवादप्रदीप कांतhttps://www.blogger.com/profile/09173096601282107637noreply@blogger.com